अयोध्या के आँगन में जब ध्वज पवन से बोला,
मानो हर मन में भक्ति का गंगा-सा भाव डोला।
श्रीराम की चरण-धूलि से पवित्र ये पताका,
आकाश तक ले गई भारत की हर धड़कन की साका।
स्वर्णिम किरणों में नहाया जब भगवा रंग खिला,
लगा जैसे स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम ने उसे छू लिया।
हर लहर में आशीष, हर उड़ान में विश्वास,
ध्वज नहीं… ये राम-नाम का जीवंत इतिहास।
हवा के संग थिरक-थिरक कर जब मुस्कुराया,
अयोध्या ने वर्षों का इंतज़ार फिर से दोहराया।
जन-जन का सपना, संतों की तपस्या,
आज उस ध्वज के संग गर्व से खड़ा है सारा भारतवर्ष—साक्षात् प्रसन्नता।
माँ भारती की पलकों पर जैसे दीपक-सा टंगा,
राम नाम की चमक लिए, हर दुख को कर गया भंग।
धर्म, त्याग, साहस का ये पावन प्रतीक,
जिसने जोड़ दिया हर दिल… हर भारतवासी को एक।
जब-जब वो ऊँचाई पर फहराया जाता है,
मन में एक ही भाव जागता है—
कि राम सिर्फ़ मंदिर में नहीं,
हमारे कर्तव्य, हमारे स्वभाव, हमारी आत्मा में बसते हैं।
वो ध्वज नहीं…
एक संदेश है—
“जहाँ राम हैं, वहाँ प्रेम है।
जहाँ प्रेम है, वहाँ जीवन है।
और जहाँ जीवन है…
वहाँ अयोध्या हमेशा बसती है।”
