जुगुर जागर जुग जुग ले
देवारी के दिन दिया बरथे।
जेकर करा बढ़ पैसा रहिथे
ओकरे दिया अंजोर करथे।
जागर के टूटत ले कमाथे
ओकरे करम फूठे रहिथे ।
ओकर बर का देवारी का
दिया ओ तो लांधन सोथे।
देवारी के दूसर दिन घर घर
बुझालो दिया तेल सकेलथे।
सब घर अंधियार रहिथे त
अपन घर म दिया जलाथे।
पइसा हे त हर साल नवा
कपड़ा पहिन के मनाथे ।
पाछु साल के फेंके परे ल
पहिन अब्बड़ खुशी जताथे।
सबके एक दिवाली होथे त
हमर हर दिन देवारी होथे।
तिहार म असमानता बढ़
साफ सबला दिखाई देथे।
हर साल तिहार के नाम
म कतको खरचा करथे ।
फेर ले समानता के बदला
असमानता हर बढ़ दिखथे।
दिवाली – देवारी के दिया
ल संग म सब झन जूर
मिल के सबो मानवन अउ
देवारी के दिया ल जरावन।


