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धमतरी

देवारी के दिया……लेखक – नरेन्द्र नन्द राधिका नगर धमतरी,छत्तीसगढ़

जुगुर जागर जुग जुग ले
देवारी के दिन दिया बरथे।

जेकर करा बढ़ पैसा रहिथे
ओकरे दिया अंजोर करथे।

जागर के टूटत ले कमाथे
ओकरे करम फूठे रहिथे ।

ओकर बर का देवारी का
दिया ओ तो लांधन सोथे।

देवारी के दूसर दिन घर घर
बुझालो दिया तेल सकेलथे।

सब घर अंधियार रहिथे त
अपन घर म दिया जलाथे।

पइसा हे त हर साल नवा
कपड़ा पहिन के मनाथे ।

पाछु साल के फेंके परे ल
पहिन अब्बड़ खुशी जताथे।

सबके एक दिवाली होथे त
हमर हर दिन देवारी होथे।

तिहार म असमानता बढ़
साफ सबला दिखाई देथे।

हर साल तिहार के नाम
म कतको खरचा करथे ।

फेर ले समानता के बदला
असमानता हर बढ़ दिखथे।

दिवाली – देवारी के दिया
ल संग म सब झन जूर
मिल के सबो मानवन अउ
देवारी के दिया ल जरावन।

 

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