“वक्त बदला, सरकारें बदलीं… पर धमतरी की घड़ी नहीं चली!”
धमतरी। जब पूरा छत्तीसगढ़ अपना रजत जयंती वर्ष मना रहा है, 25 सालों की उपलब्धियों और विकास के गीत गा रहा है, तब धमतरी शहर का घड़ी चौक मानो चुपचाप यह पूछ रहा है — “क्या मेरा समय अब कभी चलेगा?”
शहर की पहचान बनी यह घड़ी, जो कभी हर राहगीर को वक्त बताती थी, महीनों से बंद पड़ी है। सुइयां थमी हैं, लेकिन अफसरों की बेफिक्री अपनी रफ़्तार में कायम है। प्रशासन के पास योजनाओं की सूची लंबी है, पर इस ऐतिहासिक घड़ी के लिए शायद “समय” नहीं। माना जा सकता है कि घड़ी की मशीन खराब होगी…..
जब घर की घड़ी बंद हो जाती है, तो हम उसे तुरंत ठीक करवाते हैं, क्योंकि हमें समय की कीमत मालूम होती है। मगर शहर की इस घड़ी के थमने से शायद किसी की “ड्यूटी का टाइम” नहीं बिगड़ा, इसलिए बात वहीं की वहीं अटकी है।
धमतरी का यह घड़ी चौक केवल एक स्थान नहीं, बल्कि शहर की पहचान है। इसकी हर टिक-टिक में लोगों की यादें हैं, और हर घंटे की घंटी में एक अपनापन छिपा था। आज यह घड़ी थमी है, और लगता है जैसे धमतरी का गौरव भी कहीं ठहर गया हो।
छत्तीसगढ़ के रजत जयंती वर्ष में जहां प्रदेश भर में “विकास की रफ़्तार” के ढोल बज रहे हैं, वहीं धमतरी की यह घड़ी एक मौन तंज बनकर खड़ी है — मानो कह रही हो, “समय आगे बढ़ गया… पर तुम अब भी वहीं के वहीं हो।”
कहावत है, बंद घड़ी भी दिन में दो बार सही वक्त दिखा देती है।अब वक्त है कि जिम्मेदार इस रुके हुए समय को फिर से चालू करें — ताकि धमतरी भी प्रदेश की रजत जयंती में सचमुच “विकास के साथ कदमताल” कर सके।
