धमतरी/ नगर निगम के भीतर एवं बाहर इन दिनों चल रहे 25 हजार के कथित भ्रष्टाचार प्रकरण ने पूरे शहर में हलचल मचा दी है। सच्चाई की परतें खुलीं, तो लोगों की नज़र एक नई उम्मीद पर जाकर ठहर गई — ईमानदारी की मिसाल बनते महापौर रामू रोहरा…
कागज़ों में घूमती रिश्वत की चर्चा ने भले ही माहौल गर्म किया, पर असल कहानी इस बार कुछ और कह रही है। निगम के गलियारों में पहले जहां फाइलें चलाने के लिए ‘नजराना’ आम बात समझी जाती थी, वहीं अब हालात तेजी से बदल रहे हैं। अधिकारी भी अब हर निर्णय में पारदर्शिता बरतने लगे हैं, और कर्मचारी सतर्क हैं कि कहीं उनके किसी कदम से महापौर की साख पर धब्बा न लगे,महापौर का नाम न खराब हो जाए।
शहरवासियों में एक नई सोच जन्म ले चुकी है — “अब बिना पैसे काम हो सकता है”। पहले जहां ‘सिस्टम है’ कहकर नागरिक मजबूरी में जेब ढीली करते थे, आज वही लोग आत्मविश्वास से कह रहे हैं, “अब डर नहीं लगता।” महापौर के ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ के रवैये ने शहर में भरोसे का वातावरण बना दिया है।
नगर निगम का यह परिवर्तन केवल दफ्तरों तक सीमित नहीं है, बल्कि जनता के दिलों में जगह बना रहा है। अब लोग खुलकर अपनी समस्याएँ निगम तक पहुँचा रहे हैं, क्योंकि उन्हें विश्वास है कि उनकी आवाज़ सुनी जाएगी और किसी पैसे या पहचान की जरूरत नहीं पड़ेगी।
महापौर रामू रोहरा की कार्यशैली ने न सिर्फ भ्रष्टाचार की जड़ें हिलाई हैं, बल्कि ईमानदारी को एक आंदोलन का रूप दे दिया है। उनके सख्त फैसले और जनसंपर्क की नीति ने अधिकारियों को भी जवाबदेह बनाया है।
आज धमतरी का नागरिक यह कहने में गर्व महसूस कर रहा है कि – “हमारा निगम बदल रहा है।”
भले ही 25 हजार के कागज की सच्चाई पर बहस जारी हो, पर इस पूरे घटनाक्रम ने एक बात साफ कर दी है — अब कोई भी कर्मचारी या अधिकारी रिश्वत की छाया में काम नहीं कर पाएगा।
ईमानदारी का यह दौर अगर ऐसे ही चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब धमतरी नगर निगम रामू रोहरा के नेतृत्व में पूरे प्रदेश में “स्वच्छ प्रशासन” की मिसाल बनेगा।
