इंडियन जागरण न्यूज़ | विशेष रिपोर्ट
छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार को बने अब दो साल पूरे होने जा रहे हैं। राज्य के 25वें वर्ष यानी रजत जयंती के इस अवसर पर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य के दौरे पर हैं, तो जनता के ज़ेहन में एक ही सवाल है — क्या सच में “मोदी की गारंटी” पूरी हुई?
2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने वादों की झड़ी लगाई थी — किसानों, युवाओं, महिलाओं और भूमिहीन मजदूरों के सपनों को ‘गारंटी’ का नया नाम दिया गया था। लेकिन अब दो साल बाद हकीकत की ज़मीन पर वो वादे क्या रूप ले चुके हैं, यही जांच-परख का वक्त है।
वादे जो गूंजे थे…
“21 क्विंटल धान प्रति एकड़ खरीदेंगे”,
“किसान को ₹3,100 प्रति क्विंटल देंगे”,
“हर महिला को सालाना ₹12,000 सहायता देंगे”,
“1 लाख सरकारी नौकरियां देंगे”,
“गैस सिलिंडर ₹500 में उपलब्ध कराएंगे”…
इन गारंटियों ने 2023 के चुनावी माहौल में जनता के दिल में उम्मीदें जगाई थीं। भाजपा ने कहा था कि यह सिर्फ घोषणाएँ नहीं, “मोदी की गारंटी” हैं — और मोदी की गारंटी मतलब पूरा भरोसा।
⚡ बिजली बिल पर जनता को झटका:
पिछली सरकार में 400 यूनिट तक का बिल आधा किया जाता था, जिससे मध्यम वर्ग और गरीब तबके को बड़ी राहत मिलती थी।
लेकिन मौजूदा सरकार ने सीमा को घटाकर 100 यूनिट कर दिया जिसमें कुछ दरे में भी बढ़ोतरी हुई है।
नतीजा यह हुआ कि अब जिन घरों में पंखा, फ्रिज या कूलर चलते हैं, उनका बिल पहले से कहीं ज्यादा आने लगा है। ग्रामीण इलाकों में सप्लाई की असमानता और शहरों में बढ़े बिल ने जनता के भरोसे को कमजोर कर दिया है।
लोग कहते हैं — “पहले राहत थी, अब राहत की यादें रह गईं।”
धरातल पर क्या हुआ…
लेकिन जब जनता अब 2025 की हकीकत देखती है, तो तस्वीर उतनी चमकदार नहीं दिखती।
शिक्षक भर्ती का वादा सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है। लगभग 58,000 पद अब भी खाली, जबकि केवल 5,000 भर्ती की मंजूरी मिली है।
“एक लाख नौकरियों” की बात हुई थी, मगर आवेदन से लेकर नियुक्ति तक की प्रक्रिया में कछुआ चाल बनी रही।
किसानों को 3,100 रुपये प्रति क्विंटल के वादे के बावजूद, बाजार और नीति के बीच दूरी बनी हुई है।
महिलाओं को ₹12,000 की महतारी वंदन योजना की घोषणा तो हुई, लोकसभा चुनाव से पहले जिन महिलाओं का आवेदन हुआ उन्हें दिया गया लेकिन बाद में जानकारी अनुसार बहुत से पात्र महिला जिन्होंने फार्म नहीं भर पाए थे वे वंचित है।
गरीब परिवारों को ₹500 वाला गैस सिलिंडर अब भी सपने जैसा लग रहा है — बाजार भाव में फर्क तो आया, पर वादे जैसी राहत नहीं।
विकास के मोर्चे पर सरकार की दलीलें
सरकार का कहना है कि “राज्य का इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत हो रहा है” — करोड़ों की सड़क परियोजना को केंद्र से मंजूरी मिली, रेल कनेक्टिविटी जुड़ी, और नक्सल क्षेत्र में विकास-कार्य तेजी से बढ़ रहे हैं।
साथ ही, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने 2026 तक नक्सलवाद समाप्त करने का संकल्प दोहराया है।
इन पहलों को सरकार अपनी उपलब्धि मानती है, मगर जनता पूछती है — “वादों की गारंटी कब ज़मीन पर उतरेगी?”
महंगाई और उम्मीदें — जनता का नज़रिया
महिलाओं के लिए गैस, युवाओं के लिए नौकरी, किसानों के लिए दाम, और गरीबों के लिए सहायता — इन सबकी उम्मीदें अब भी अधूरी हैं।
रसोई में सिलिंडर फिर महंगा, रोज़मर्रा की चीजें महंगी, और रोजगार के अवसर सीमित — ऐसे में जनता महसूस करती है कि “गारंटी का वजन” अभी भी कंधों पर है।
लोग मानते हैं कि मोदी सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर योजनाएँ दी हैं, पर छत्तीसगढ़ की ज़मीनी हकीकत अब भी उम्मीदों के बोझ तले दबी है।
रजत जयंती पर सवाल – गारंटी की चमक फीकी या नई रोशनी?
राज्य अपनी स्थापना के 25 साल पूरे कर रहा है, और उसी समय भाजपा सरकार के दो साल होने वाले है। यह ऐसा मौका है जब जनता और सत्ता दोनों को आत्ममंथन की ज़रूरत है —
क्या वाकई यह दो साल “गारंटी के” कहलाने लायक हैं, या फिर यह वादों का दूसरा संस्करण बनकर रह गए हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब रजत जयंती समारोह में छत्तीसगढ़ आए है, तो जनता की नज़र उनके भाषण से ज़्यादा उनके किए गए वादों की समीक्षा पर रहेगी।
“मोदी की गारंटी” ने जनता के दिलों में भरोसे की नींव डाली थी, लेकिन दो साल बाद उसकी दीवारों में दरारें दिख रही हैं।कुछ योजनाएँ आगे बढ़ीं, कुछ अटकीं, और कुछ केवल भाषणों में चमक रहीं
राज्य के नागरिक अब भी इंतज़ार में हैं —“गारंटी” कब हकीकत बनेगी, और छत्तीसगढ़ का आम आदमी कब महसूस करेगा कि सरकार उसके जीवन में सचमुच बदलाव लाई है।
